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498A से कैसे बचे | झूठे दहेज़ मुक़दमो से कैसे बचे

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498A और दहेज़ सम्बन्धी कानून के बारे में अधिकतर पूछे जाने वाले सवाल

498A से कैसे बचे? झूठे दहेज़ मुक़दमो से कैसे बचे? जब हमने कोई दहेज़ माँगा ही नहीं तो पुलिस झूठा मुक़दमा कैसे दर्ज कर सकती है? 498A और दहेज़ सम्बन्धी कानून के बारे में अधिकतर पूछे जाने वाले सवालों में ये तीन सवाल सबसे ऊपर है.

उसकी वजह बहुत हद तक माननीय सुप्रीम कोर्ट उसकी वजह बहुत हद तक माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए कई निर्णय है | भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अर्नेश कुमार (ARNESH KUMAR JUDGMENT) का निर्णय सुनाये जाने के पश्चात से 498A में बड़े पैमाने पर परिवर्तन आया है । हाल ही में रिट याचिका (दिवानी)सं 73/2015, सोशल ऐक्शन फोरम फ़ॉर मानव अधिकार व अन्य वनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया सपठित आपराधिक अपील सं 1265/2017 एवं रिट याचिका ( आपराधिक)सं 156/2017 के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय ने अपने प्रयासों से भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498A के रक्षात्मक उपायों को समझने एवं देखने के उपरांत राजेश शर्मा के निर्णय द्वारा परिवार कल्याण समिति की सिफ़ारिशो को समाप्त करते हुए भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498A के सन्दर्भ में विस्तृत विधिक समाधन किये।

इन सामयिक सुधारों या फिर कहो बदलावों की वजह से सहोदर और अब YouTube Live की साप्ताहिक बैठकों में मेरे समक्ष रखे जाने वाले प्रश्न भी बदल गये हैं । इसलिए मैंने निश्चीत किया कि उन सभी का संकलन करके सामान्य तरीके से प्रत्येक का उत्तर देने का प्रयास किया जाये जिससे कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498A को वर्तमान परिदृश्य में समझ के साथ प्रस्तुत किया जाय शायद मेरे पास इन सबसे 100% बचने का कोई उपाय नहीं है, फिर भी काफी कुछ किया जा सकता है |

498A (Section 85 BNS) के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

हां, 498A प्रस्तुत करने के लिए विवाहोपरान्त वर्षों की कोई परिसीमा नहीं है । तथापि इसका अर्थ यह नहीं है कि पत्नी या उसके रिस्तेदार किसी भी समय अपनी स्वेच्छा के पति के ऊपर 498A प्रस्तुत कर सकता है ।आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 468 के अनुसार 498A प्रस्तुत करने हेतु कथित घटना से तीन वर्ष की परिसिमा है ।

यह सवाल मुझे सबसे दिलचस्प लगता है, धारा 498A में दहेज़ शब्द विल्कुल शामिल नहीं है। भारतीय दण्ड संहिता में धारा 498A के लिए अलग से अध्याय 20अ को प्रस्तावित किया गया जिससे कि न सिर्फ प्रभावी रुप से दहेज हत्या बल्कि विवाहित महिलाओं के ससुराल वालों के द्वारा क्रूरता के मुकदमों का निपटारा सुनिश्चित हो। दहेज़ का निपटारा विषेश रूप से दहेज उत्पीड़न अधिनियम,1961 के द्वारा होता है। धारा 498A के द्वारा विवाहित महिला के साथ होंने वाले क्रूरता ( मानसिक औरशारीरिक दोनो) की व्याख्या एवं निपटारा होता है तथा महिला के साथ उत्पीड़क तत्वों जैसे कि उस पर दबाव बनाने या उसके रिस्तेदरों द्वारा अवैध रुप से किसी सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति की मांग करना, जो कि दहेज के रूप में हो ।

हां, वास्तव में अक्सर देखा जाता है कि यहां तक कि जहाँ विवाहित दम्पति अलग शहर में रह रहे थे वहाँ पत्नी के सास ससुर को केवल उत्पीड़न करने के लिए शिकायत पत्र में जोड़ दिया गया।न्यायालय ने इस पर सख्त नजरियाअपनाया, लेकिन यहाँ तक कि आज भी इसका दुरुपयोग नहीं रुक रहा है। पति के विवाहित बहन का नाम अक्सर उसके वैवाहिक जीवन को दुरूह करने के लिये जोड़ दिया जाता है और अविवाहित बहन का जिससे की उसका विवाह आसानी हो न हो सके ।

हां, आपको फिर भी गिरफ़्तार किया जा सकता है, यदपि अर्नेश कुमार निर्णय के द्वारा 498A में स्वतः गिरफ़्तारी नहीं हो सकती और पुलिस अधिकारी को कोई गिरफ़्तारी करने या न करने के लिये दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 41के तहत दिशा-निर्देश का पालन करना होगा।जैसा कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 41(1)(b)में निर्दिष्ट है,”जिसके विरुद्ध उचित शिकायत दर्ज किया गया है या विश्वसनीय सूचना प्राप्त है,या उचित संदेह अस्तित्त्व में है कि उसने संगेय अपराध कारित कीया है जो कि सात वर्ष से कम की अवधि या सात वर्ष तक की अवधि एवं जुर्माने के साथ या जुर्माने के बिना दंडनीय है, यदि निम्न शर्ते पूरी हैं “और पुलिस अधिकारी इस प्रकार की गिरफ़्तारी करते समय इसका कारण लिखेगा ।यह भी कि पुलिस अधिकारी इस उपधारा के प्रावधानों में ऐसे सभी मुकदमें जिसमें व्यक्ति की गिरफ्तारी आवश्यक नहीं है,में गिरफ्तारी नहीं करने के कारणों को उल्लिखित करेगा।

साफ -साफ यहाँ गिरफ्तारी करने में कोई प्रतिबंध नहीं है किन्तु गिरफ़्तारी के लिए कानून की उचित प्रक्रिया का पालन आवश्यक है ।

नहीं, यह धारा केवल विधिक एवं वैध विवाहित महिला के लिए है ।

हां,चल सकता है । कोई विधिक प्रतिवंध नहीं है ।

हां, भारत में अभियोगत्मक प्रणाली की आपराधिक विधि लागू है जहाँ कि आरोपी के सजा के लिये आपराधिक कृत्य का उचित संदेह के परे साबित होना आवश्यक है ।सामान्य नियम यह है कि आरोपी को तब तक निरपराध माना जाए जब तक की उसका दोष साबित न हो ।इसलिए यह अभियोजन का कार्य है कि अपने मुकदमें को उचित संदेह से परे साबित करे। मानवाधिकारों के सार्वत्रिक घोषणा 1948 का अनुच्छेद 11.1 कहता है कि “प्रत्येक को जिसे दण्ड अपराध के लिए आरोपित किया गया है,का अधिकार है कि उसे तब तक निरपराध माना जाए जब तक कि सार्वजनिक परिक्षण विधि के तहत दोष सिद्ध न हो जहाँ कि उसे हर प्रकार के बचाव करने की आवश्यक गारंटी हो”।हमारे संविधान के अनुच्छेद 20 के द्वारा संदिग्ध के पक्ष में बेगुनाह होने की सम्भावना व्यक्त है , जब तक पुष्टि न हो, प्रतिबंधित नहीं करता, इस तरह इसे संसद पर छोड़ देना चाहिए कि जब कभी मिल जाय तो इसका आवश्यक उपाय करे। धारा 304(b) (Dowry Death: Proposed Section 79 of The Bharariya Nyaya Sanhita, 2023) जो कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 113( b) के द्वारा शासित है, में साबित करने का भार पति पर है और उसे निरपराध होने की सम्भावना का लाभ नहीं दिया गया है, तथापि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498A के लिए ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है।

चुकिं यह एक आपराधिक मुकदमा है, आरोपी का प्रत्येक तारीख़ पर उपस्तिथि अपेक्षित है, तथापि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 205 के तहत एक आवेदन दिया जा सकता है|  मजिस्ट्रेट आरोपी को व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट प्रदान कर सकता है। जबकभी दण्डाधिकारी सम्मन निर्गत करता है, यदि वह ऐसा करने का कारण देखता है,तो वह आरोपी को व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट प्रदान कर सकता है और उसे अपने अधिवक्ता के द्वारा उपस्थित होने की अनुमति प्रदान कर सकता है । लेकिन मुकदमें की जांच या विचारण में दण्डाधिकारी अपने विवेक से किसी भी कार्यवाही के समय आरोपी की व्यक्तिगत उपस्तिथि का निर्देश दे सकता है और यदि आवश्यक हो तो ऐसी उपस्थिति को उपरोक्त्त दिये तरीके से सुनिश्चित कर सकता है ।

हां, केवल प्रथम दृष्टया क्रूरता या उत्पीड़न के आरोप की आवश्कता है जैसा कि 498A में परिभाषित किया है ।

रद्द करने के लिए बहुत ही सीमित कारण हैं ।

निम्नलिखित कारणों के होने पर एक रद्दीकरण याचिका प्रस्तुत किया जा सकता है–

  1. यह कि न्यायालय को क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार नहीं है कि ।
  2. एवं यदि अभियोजन की कहानी को सही मानकर ग्रहण कर लिया जाए तो भी अपराध नहीं हुआ और दोष सिद्ध सम्भव नहीं है ।
  3. लगाये गये आरोप इतने असम्भव है कि एक प्रज्ञावान व्यक्ति विश्वास नहीं कर सकता है ।
  4. सम्पूर्ण अभियोजन दुर्भावनापूर्ण है ।

यह कि आरोप झूठे हैं, विचारण का तथ्य है और इस बिना पर रद्द होना सम्भव नहीं है ।

हां, आप अपना मुकदमा न्यायालय में लड़ सकते हैं यदि आप विधिक रुप से सक्षम हैं या आपके पास कानून की बारीकियों को सीखने व समझने का समय है ।तथापि यदि किसी प्रथम सूचना रिपोर्ट में एक से अधिक आरोपी हैं, तो आप दूसरे आरोपी के लिये नहीं लड़ सकते।

परिवार कल्याण समिति समाप्त हो गयी है और इसलिये इसके सभी निर्देश एवं नियम निरस्त हो गए हैं ।अब आगे किसी व्यक्ति के गिरफ़्तारी से पूर्व परिवार कल्याण समिति की आख्या आवश्यक नहीं है ।गिरफ़्तारी प्रक्रिया और क्षमता दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 41 एवं 41A के तहत जाँच अधिकारी में निहित है ।

चूंकि परिवार कल्याण समिति नहीं है , अब गिरफ़्तारी की प्रक्रिया राजेश शर्मा के निर्णय के पूर्ववत हो गयी । जांच अधिकारी दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 41A तहत सूचना देकर जाँच में सम्मिलित होने के लिए कह सकता है ।अंतरिम सुरक्षा एवं जमानत प्राप्त करने के लिए उपयुक्त समय, सी ए डब्लू/महिला थाना पर समझौता नही होने पर प्राप्त है ।

सितंबर 14 के निर्णय के बाद 498A व अन्य सम्बंधित अपराधों को रद्द करने का अधिकार उच्च न्यायालय को चला गया है।जिला एवं सत्र न्यायाधीश 498A की कार्यवाही रद्द करने में सक्षम नहीं है ।

यदपि स्त्रीधन की प्राप्ति कभी भी अग्रिम जमानत की अर्जी खारिज करने का कारण नहीं रहा,जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय ने प्रतिपादित किया है,लेकिन यह बहुत से राज्यों में व्यवहार में रहा। सर्वोच्च न्यायालय ने साफ शब्दों में स्पष्ट किया कि स्त्रीधन की वापसी स्वयं में जमानत के लिये पूर्व शर्त नहीं है ।तथापि इसको भी राजेश शर्मा के निर्णय में बरकरार रखा । यदि पति न्यायालय द्वारा आदेशित गुजारा भत्ता नहीं दे रहा है,तो जमानत खारिज हो सकता है ।

498A का सामना कर रहे अप्रवासी भारतीयों को भी सांस लेने में आसानी है । सर्वोच्च न्यायालय ने अपने विवेक से उपाय किए हैं कि रेड कार्नर नोटिस या पासपोर्ट जब्ती समान्य मामले में नहीं होगा ।इसका तात्पर्य यह है कि यदि अप्रवासी भारतीय सम्मन प्राप्त कर रहा है और जब कभी निर्देश होने पर उपस्थित हो रहा है,तो कार्य करने व रुकने हेतु उसके यात्रा के विशेषाधिकार में कटौती नहीं होगा।

मेरे द्वारा उपरोक्त में मेरे समक्ष आये ज्यादातर प्रश्नों के सम्बन्ध में स्पष्टीकरण दिया गया है। यदि आपको कोई अन्य प्रश्न के बारे में जानना हो जो कि उपरोक्त में वर्णित नहीं की गई हो तो आप इसके बारे में कमैन्ट सैक्शन में या मेरी EMAIL – info@shoneekapoor.com पर पूछ सकते हैं ।

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