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ऐसी औरतों को नहीं मिलेगा गुजारा भत्ता

Such women will not get maintenance allowance

एैसी महिलाएं भरण-पोेषण प्राप्त करने की हकदार नहीं हैं

(भरण-पोषण प्राप्त करने के लिए अयोग्ताएं)

पत्नी के लिए भरण-पोषण न देने वाले निर्णय और सूचनाओं को ढूंढ रहे व्यक्ति कानून के तहत भरण-पोषण दिये जाने वाले प्रावधान के एक मूलभूत कारण को भूल जाते हैं । विभिन्न वैवाहिक एवं अन्य कृत्यों में भरण-पोषण का प्रावधान जनसंख्या के एक बड़े हिस्से के बीच योनी और विनाश को रोकना है । हांलांकि, समय बीतने के साथ-साथ यह भरण-पोषण के मामले, बेईमान महिलाओं के हाथ मेें जबरन वसूली करने का हथयार बन चुके हैं। मैनें पहले एक लेख लिखा था कि भारतीय (हिन्दू) महिलाओं के लिए भरण-पोषण का प्रावधान स्वर्ग के समान है । शुक्र है कि विधान-सभा ने अपने बुद्धि का प्रयोग करते हुए एैसे सुरक्षा के प्रावधान भी प्रदान किये हैं जो कि बेईमान महिलाओं को भरण-पोषण प्रदान करने के प्रावधान को रोकते हैं ।

हमें यह समझना होगा कि भरण-पोषण प्रदान करने के लिए मुख्यतः निम्नलिखित कारक कार्य करते हैंः –

इसलिए उपरोक्त तथ्यों को बुनियाद मानते हुए निम्नलिखित श्रेणी की महिलाएं भरण-पोषण की राशि का दावा नहीं कर सकती हैं । बेशक इस लिस्ट में उन महिलाओं को शामिल नहीं किया गया है जो कि स्वयं के भरण-पोषण करने के लिए पर्र्याप्त आय प्राप्त कर रही हों ।

जारता का अर्थ क्या होता है?

जारता एक ऐसा व्यवहार है जो एक पवित्र रिश्ते की मर्यादा को भंग करता है। जब कोई व्यक्ति अपने जीवनसाथी के विश्वास को तोड़कर किसी और से संबंध बनाता है, तो इससे रिश्तों में गहरा आघात लगता है। यह केवल दो लोगों के बीच का मामला नहीं रहता, बल्कि पूरा परिवार और सामाजिक सम्मान भी इससे प्रभावित होता है। जारता से भावनात्मक दर्द, अविश्वास और टूटन पैदा होती है, जो रिश्तों को अंदर से खोखला कर देती है।

महिला जो कि जारता की दशा में रह रही होंः सी.आर.पी.सी. की धारा 125 की उपधारा 4 के तहत कोई भी महिला अपने पति से भरण-पोषण की राशि या भत्ता प्राप्त करने की हकदार नहीं होगी जो कि जारता की दशा में रह रही हों । इसका अर्थ यह है कि पत्नी अपने पति से भरण-पोषण की राशि का दावा करने का अधिकार खो बैठंगी जो कि बावजूद इसके कि चाहे वह स्वयं के लिए पर्याप्त आय अर्जित कर रही हो या फिर जारता की दशा में रह रही हों । हालांकि जारता की दशा में रहने को एकान्त में रहने या जारता में रहने की दशा के छिटपुट उदाहरण हो । जारता की दशा में रहना जारता के आचरण की निरंतर प्रक्रिया है । बोम्बे और गोहवाटी के उच्च न्यायालयों ने जारता मंे रहने की दशा को वर्तमान काल के समय को दर्शाता है और धारा 125(4) वर्तमान काल को दर्शाता है । जबकि मद्रास एवं अन्य उच्च न्यायालयों ने यह माना है कि पत्नी यदि किसी एैसे आदमी के साथ भरण-पोषण की याचिका दाखिल करने के कुछ समय पहले या बाद में अस्थाई रूप से रह रही थी तो तब उसका भरण-पोषण प्राप्त करने का अधिकार समाप्त हो जायेगा । यह धारा तब भी लागू होगी जब तलाक की डिक्री का अवार्ड प्राप्त करने के पश्चात महिला किसी और के साथ जारता की दशा में रहना शुरू करती है तो तब इस सम्बन्ध में सबूत दाखिल करने के बाद ही एैसे भरण-पोषण प्रदान करने के अवार्ड को रद्य कर दिया जायेगा ।

महिला जो कि दूसरा विवाह करती हैः यदि महिला दूसरा विवाह करती है तो तब यह तर्कपूर्ण हो जाता है कि इससे वह भरण-पोषण प्राप्त करने के अधिकार से वंचित हो जायेगी । इसे निरंतर जारता भी माना जायेगा जब यह पहली शादी के अस्तित्व में रहते हुए किया गया हो।

महिला जिसने अपनी मर्जी से पति के साथ रहने से मना कर दिया होः महिला के द्वारा अपनी मर्जी से अपने पति के साथ रहने से मना करने का अर्थ यह माना जायेगा कि उस पत्नी को कोई भरण-पोषण की राशि अदा नहीं की जायेगी । हालांकि, पति के साथ अलगाव में रहने या उसके साथ रहने से मना करने को साबित किया जायेगा । न्यायालय के समक्ष एैसे कई मामले आये हैं जिसमें पत्नी अपने पति पर उसके माता-पिता से अलग रहने पर दबाव डालती है, पत्नी अपने माता-पिता के साथ उनकी कृषि भूमि की देखरेख करती है, पत्नी अपने सास-ससुर के साथ रहने से इन्कार करती है । पत्नी के द्वारा अपने पति से अलग रहने के लिए उसको अनावश्यक परिस्थिति में डालना और पति से अलग रहने के लिए निरर्थक एवं नीरस बहाने बनाना, यह पर्याप्त कारण है उस महिला को भरण-पोषण देने से इन्कार करने का ।

महिला जिसके पक्ष में बहाली की डिक्री पारित की गई होः

उपरोक्त के फलस्वरूप, वैवाहिक अधिकारों की बहाली की डिक्री पारित करना इस बात का प्रमाण है कि पत्नी के द्वारा बिना किसी उचित कारण के वह वापिस आना चाहती है वह भी बिना किसी उचित बहाने के और इसे उसके द्वारा पति से अलग स्वेच्छा से रहना माना जायेगा। हालांकि इस विषय पर न्यायालयांे का मत विभाजित है कि क्या वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए एकतरफा डिक्री पारित करना पर्याप्त है । इन मामलों में न्यायालय पत्नी के आचरण पर विचार करती है कि क्या उसको नोटिस की तामील हुई, क्या उसके द्वारा डिक्री को चुनोती दी गई है या नहीं । न्यायालय के द्वारा डिक्री पारित होने के बाद पति के आचरण को भी देखा गया है । यदि अपने पक्ष में पारित हुई डिक्री के बाद भी वह अपनी पत्नी को उसको अपने साथ रखने की अनुमति नहीं देता है तो तब पत्नी को उसका भरण-पोषण दिया जायेगा ।

महिला जिसकी भरण-पोषण याचिका सक्षम न्यायालय के द्वारा खारिज कर दी गई होः

वर्तमान कानूनी स्थिति के अनुसार, यह मजिस्ट्रेट का दायित्व है कि वह भरण-पोषण भत्ता देने के सम्बन्ध में सक्षम दीवानी न्यायालय के निर्णय की पालना करे ।  इसका अर्थ यह कि यदि दीवानी न्यायालय के पास आपराधिक न्यायालय द्वारा पारित कोई आदेश आता है तो तब मजिस्ट्रेट का यह दायित्व होगा कि वह भरण-पोषण भत्ते को सी.आर.पी.सी की धारा 125 के तहत रद्य कर दे । हालांकि यहां यह समझना आवश्यक है कि हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत पारित आदेश पर विचार नहीं करना है क्योंकि यह केवल भरण-पोषण से संबंधित है । केवल दीवानी न्यायालय का अंतिम आदेश ही मान्य होगा । दीवानी न्यायालय के द्वारा हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 25 और हिन्दू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम के तहत पारित आदेश का पालन किया जायेगा । यदि महिला को बिना भरण-पोषण के तलाक दिया जाता है तो तब मजिस्ट्रेट के आदेश को चुनौती दी सकती है क्योंकि यह अनिवार्य होगा कि के पास अपने पति से अलग रहने का कोई कारण नहीं है और उसका आचरण एैसा था कि वह भरण-पोषण प्राप्त करने की हकदार नहीं है । इस कानूनी स्थिति को विशेषकर विभिन्न न्यायालयों के समक्ष एक ही तथ्य को साबित करने से बचने के लिए तैयार किया गया है ।

जहां महिला अलग से रह रही हो और उसके द्वारा भरण-पोषण का त्याग कर दिया गया होः

हालांकि नवीनतम निर्णयों के अवलोकन से, इस तथ्य पर कुछ आशंका है । हालांकि आम सहमति यह है कि यदि महिला ने स्वेच्छा से भरण-पोषण प्राप्त करने के अपने हक को त्याग दिया हो या एकमुश्त भरण-पोषण की राशि प्राप्त कर ली हो या फिर वह भविष्य में कभी भी भरण-पोषण राशि का दावा नहीं करेगी । यह कहा जाता है कि भरण-पोषण का अधिकार सार्वजनिक नीति के खिलाफ है इसलिए यह निरस्त है और इसलिए इसे त्याग करने के बावजूद यदि परिस्थितियों में कोई बदलाव आता है तो, यदि वह स्वयं का रखरखाव नहींं कर पा रही होे, तब वह भरण-पोषण प्राप्त करने के लिए दावा कर सकती है । लेकिन एैसी परिस्थितियों में न्यायालय परिस्थितियों मे आये भीषण बदलाव पर ज़ोर देता है ।

जहां महिला के विरूद्ध उसकी स्वयं की गलती के लिए तलाक पारित किया गया हो:

हालांकि तलाकशुदा पत्नी भरण-पोषण प्राप्त करने का दावा कर सकती है जहां प्रारंभ मंे वह स्वयं की गलती या अपराध के कारण अपने पति से अलग रही हो जो की भरण-पोषण प्राप्त करने पर भारी पड़ता हो, जो न्यायालय के द्वारा स्वीकृत किया जायेगा । हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 25 के तहत न्यायालय के द्वारा स्थाई भरण-पोषण का निर्णय करते वक्त पक्षकारों का आचरण एक निर्णायक कारक होता है । उच्च न्यायालयों के द्वारा एैसे कई निर्णय पारित किये गये हैं जहां महिला को जारता, क्रूरता और अलगाव के कारण तलाक दिया गया हो,  जहां पर न्यायालय ने या तो न्यूनतम भरण-पोषण राशि के लिए इन्कार किया हो या स्वीकृती दी हो ।

मेरे द्वारा उपरोक्त में मेरे समक्ष आये ज्यादातर प्रश्नों के सम्बन्ध में स्पष्टीकरण दिया गया है। यदि आपको कोई अन्य प्रश्न के बारे में जानना हो जो कि उपरोक्त में वर्णित नहीं की गई हो तो आप इसके बारे में कमैन्ट सैक्शन में या मेरी EMAIL – info@shoneekapoor.com पर पूछ सकते हैं ।

यदि आप भरण-पोषण के मामलों में आदमी के हक में पारित नवीनतम निर्णय के बारे में जानना चाहते हैं तो मैं आपको यह सलाह दूंगा कि आप इस पेज को पढें

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